Home Uncategorized बिना कोख के ही पैदा हो सकेंगे बच्चे ! लैब में बिना स्पर्म के ही बनाया गया दुनिया का पहला भ्रूण

बिना कोख के ही पैदा हो सकेंगे बच्चे ! लैब में बिना स्पर्म के ही बनाया गया दुनिया का पहला भ्रूण

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World’s First Synthetic Embryo : दुनिया में कई ऐसे देश हैं, जिन्हें हम कुछ अलग कारणों से जानते हैं लेकिन यहां की कुछ ऐसी खासियत भी है, जिसके बारे में हमें पता नहीं होता. ऐसा ही देश है इज़रायल भी, जिसकी चर्चा ग्लोबल मीडिया में फिलिस्तीन से झगड़े की वजह से होती है, लेकिन इस वक्त ये देश अपनी एडवांस टेक्नोलॉजी को लेकर चर्चा में है. यहां के वैज्ञानिकों ने मेडिकल साइंस (Do You Know About Synthetic Embryo) की दिशा में चमत्कार कर दिखाया है.

इजरायल ने दुनिया का पहला कृत्रिम भ्रूण (Synthetic Embryo) तैयार किया है, जो अब तक सिर्फ कल्पना माना जा रहा था. इस पर दुनिया भर के कई देश रिसर्च कर रहे थे, लेकिन इज़राइल ने अपनी लैब में ऐसा सिंथेटिक भ्रूण तैयार कर लिया है, जिसके लिए न तो किसी स्पर्म और एग की ज़रूरत पड़ी और न ही इसे पालने के लिए कोई कोख चाहिए. भ्रूण बन चुका है और उसका दिल धड़कना भी शुरू हो चुका है.

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कृत्रिम भ्रूण में दिमाग और दूसरे अंगों का भी विकास हो रहा है. (Credit- Weizmann Wonder Wander )

कैसे तैयार किया गया भ्रूण ?
एक जीव को पैदा होने के लिए स्पर्म, एग और कोख की जरूरत होती है, जो बच्चे को 9 महीने तक पाल सके. इजरायल के वैज्ञानिकों ने इन तीनों चीजों के बिना ही एक कृत्रिम भ्रूण का निर्माण कर दिया है और इसका अब तक का विकास भी ठीक तरीके से हो रहा है. भ्रूण को इजरायल के Weizmann इंस्टीट्यूट ने तैयार किया है और इसे बनाने के लिए स्टेम सेल्स का इस्तेमाल किया गया है. उन्होंने इस पर रिसर्च की और फिर भ्रूण को तैयार किया, जिसका अब दिल धड़कने लगा है. ये भ्रूण चूहे का है, जिसका दिमाग भी विकसित हो रहा है और पूंछ भी बनती हुई दिख रही है.

काफी रिसर्च के बाद मिली कामयाबी
इस तरह के सिंथेटिक भ्रूण को फर्टिलाइज्ड अंडों के बगैर ही तैयार किया गया है. इस आविष्कार के ज़रिये भ्रूण विकास के चरणों को जानने में मदद मिलेगी. ऐसा प्रयोग इंसानों के शरीर पर किस तरह हो सकता है, ये जाना जा सकेगा. वैज्ञानिकों ने प्रयोग में वो सभी तरीके इस्तेमाल किए हैं, जो गर्भ में भ्रूण के विकास के लिए काम में आते हैं और वैसा ही वातावरण देने की भी कोशिश की. शोधकर्ताओं का मानना ​​​​है कि इससे जानवरों पर होने वाले प्रयोग को भी कम किया जा सकेगा और इंसानों के शरीर में भी ट्रांसप्लांटेशन में मदद मिल सकेगी. इस रिसर्च को आगे लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है और अलग-अलग भ्रूण के निर्माण में उपयोगी बताया जा रहा है.

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